सरसी छंद
सरसी छंद
(दीपावली महोत्सव)
सम चरण तुकांत
मात्रा भार 16/11
16,11 पर यति
दीपावली दीप की माला, परम मनोहर दृश्य।
मोहित बहुत जगत सारा है,दीप दान प्रिय स्पृश्य।।
दीप शिखा अति पावन मोहक, खुश होते सब सन्त।
दीप महोत्सव पर्व लुभावन,नहीं आदि नहिं अंत।।
दिल से दिल को यही जोड़ती, दीपावली महान।
लक्ष्मी वैभव ले कर आता,पर्व विश्व की जान।।
सारा जगत प्रकाशित करता,यही ज्ञान का गेह।
तिमिर मिटाता चलता रहता, छिपा पर्व में स्नेह।।
दिव्य ज्योतिमा का यह आलय,अति मनभावन पर्व।
ज्ञानामृत रस देता निश्चित, विश्व पर्व नित सर्व।।
मंद बुद्धि को सहज रौंदता, ज्ञानशिखामय दीप।
कलुषित भावों का यह मारक, यह त्योहार महीप।।
मन में हर्षोल्लास सुहावन, जलता दीपक देख।
दिल दरिया में प्रेम उमड़ता,दिव्य दृष्टि की रेख।।
विजय पताका यह लहराता, फहराता आकाश।
दूषित क्षितिज सदा धूमिल है,पावन क्षितिज प्रकाश।।
नयन ज्योति को विकसित करता, दीप यज्ञ मधु दान।
शांत पथिक सा दिखता चलता, दीप पर्व प्रिय मान।।
लक्ष्मी धन्वंतरि यम देवा, सब की पूजा होत।
देवालय धरती पर आता,देवमंत्र का स्रोत।।
मंत्रों का जप चलता रहता, सभी जगाते मंत्र।
रिद्धि-सिद्धियाँ आ कर रहतीं, दिखत ब्रह्म का तंत्र।।
अन्त:चक्षु प्रज्वलित होता, अन्तर्दृष्टि अपार।
अंतस सहज प्रकाश पुंज बन, करत सतत उजियार।।
Rajeev kumar jha
31-Jan-2023 12:13 PM
Nice
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